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SANSKRIT

SANSKRIT

                                        संस्कृत विभाग

      संस्कृत भाषा दर्शन और साहित्य की महान ऐतिहासिक परंपरा रही है । भारत में आर्य सभ्यता के विकास में इस भाषा दर्शन और ज्ञान परपंरा की केंद्रीय भूमिका रही है । जर्मनी में संरचनावादी भाषा - अध्ययन के क्षेत्र में  जो उल्लेखनीय कार्य हुए हैं उनपर पाणिनी के भाषा दर्शन का प्रभाव है । हिंदी सहित भारत की अन्य भाषाओं का उदय द्रविड़ परिवार को छोड़कर संस्कृत की परंपरा से हुआ है । विभिन्न कलाओं का अध्ययन, नाट्यशास्त्र साहित्य शास्त्र के साथ साथ प्रबंध काव्य नाट्य कला आदि का विकास भी संस्कृत की साहित्य परंपरा से ही हुआ है । इनके अलावा दर्शन तर्क मीमांसा और सौंदर्य शास्त्रीय विवेचन की भी एक मजबूत परंपरा का विकास भी संस्कृत से ही हुआ है ।

          वर्तमान सायबर युग में संस्कृत प्रासंगिकता बढ़ी है । कंप्यूटरीकरण के क्षेत्र में भी इसका महत्व आज माना जा रहा है । सबसे बड़ी बात है कि भारतीय धर्म दर्शन और सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए संस्कृत भाषा और साहित्य का अध्ययन अपरिहार्य है और इसके ज्ञान के बिना कोई भी समाज अपनी  जड़ों से विच्छिन्न  हो जाता है । संस्कृत विभाग इसी अनिवार्यता को लक्ष्य मानकर अपने विद्यार्थियों को सच्चा भारतीय बनाने का प्रयास कर रहा है । इसमें प्रतिष्ठा स्तर तक की पढ़ाई होती है । विद्यार्थी इंटर करने के बाद स्नातक प्रतिष्ठा में नामांकन करा सकते हैं । भाषा - अध्ययन के साथ साथ काव्यनाटक काव्य सिद्धांत आदि की पढ़ाई यहां होती है ।

        संस्कृत में प्रतिष्ठा की डिग्री प्राप्त करने के बाद विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त निजी एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति की  संभावनाएं उपलब्ध हैं । इस क्षेत्र में स्वरोजगार की भी अपार संभावनाएं  उपलब्ध हैं ।

 

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